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Sunday, December 18, 2011

भ्रष्टाचार मिटाने चले हैं!


साधो, मुद्दा ईमानदार बनाम बेईमान का नहीं है, बल्कि जेरे-बहस यह है कि भ्रष्ट और महाभ्रष्ट की शिनाख्त किस तरह हो। क्या महाभ्रष्ट के सामने भ्रष्ट का अपराध क्षम्य है? भ्रष्ट और महाभ्रष्ट के बीच नाप-तौल के लिए कोई तराजू तो बनी नहीं। ऐसे में आप अपना सिर धुनने के अलावा क्या करेंगे। 

उत्तर प्रदेश में कुछ समय पहले नौकरशाहों के बीच पांच महाभ्रष्टों का चुनाव उनकी ही यूनियन करती थी। मुझे कभी समझ में नहीं आया कि इन महाभ्रष्टों को चुने जाने का आधार कौन-सा था और उनका चयन करने वाले क्या ईमानदार लोग थे। जब भ्रष्ट होंगे, तभी तो महाभ्रष्ट होंगे। महाभ्रष्ट भी शुरुआत में भ्रष्ट ही रहे होंगे। उनके भ्रष्ट से महाभ्रष्ट होने के सफरनामे पर कभी सवालिया निशान क्यों नहीं लगा? फिर सिर्फ पांच ही महाभ्रष्टों का चयन क्यों? 

आज संकट यह है कि कोई आदमी स्वयं को भ्रष्ट या बेईमान नहीं मानता। वह जो कुछ करता है, उसके पीछे अकाट्य तर्क देता है-यार, लो पेड आदमी महंगाई के इस जमाने में कैसे गुजर-बसर करे? अगर रिश्वत न लें, चोरी न करें, तो शाम को चूल्हे पर क्या उसूल पकाएंगे? कौन रिश्वत नहीं लेता? कोई रोजगार बगैर बेईमानी के नहीं चल सकता। अब बताइए, इन दलीलों के सामने आपकी बुद्धि क्या पानी नहीं भरने लग जाएगी? 

पड़ोसी झुंझलाकर पूछता है, बताओ कि यह भ्रष्टाचार मिटेगा कैसे? मैंने कहा कि उसे मिटाने की जरूरत क्या है? वह हमसे ज्यादा ताकतवर है। वह अंतर्यामी है, कण-कण में बसा हुआ। उसे खत्म करने की जुर्रत करेंगे, तो हम खुद समाप्त हो जाएंगे। भ्रष्टाचार मुक्त समाज की कल्पना जो लोग करते हैं, वे सिरे से पागल हैं। वे मूर्खों के स्वर्ग में निवास करते हैं। दरअसल, कुछ लोग निठल्ले हैं। उन्हें काम चाहिए। बैठे ठाले उन्होंने सोचा, चलो, भ्रष्टाचार मिटा डालें। जो अमिट है, उसे मिटाने की बात सोचना परले दरजे का पागलपन है। दूसरी ओर यह सारी उछल-कूद देख भ्रष्टाचार मन ही मन मुसकराते हुए गुनगुनाता है, कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौरे-जहां हमारा। 

आप ही बताओ कि इतिहास में कौन-सा जमाना था, जब भ्रष्टाचार का वजूद नहीं था? दुनिया भर के भ्रष्ट एक होकर इस पूरी व्यवस्था को संचालित कर रहे हैं। मेरा मानना है कि एक अभियान चलाकर ऐसे लोगों को भी भ्रष्ट बनाने की कोशिशें तत्काल शुरू कर देनी चाहिए, जो आज भी जहां-तहां ईमानदारी का परचम लहरा रहे हैं। जब सब भ्रष्ट हो जाएंगे, तब भ्रष्टाचार को समाप्त करने की जरूरत ही खत्म हो जाएगी।-सुधीर विद्यार्थी, अमर उजाला, Story Update : Sunday, December 18, 2011 9:24 PM 

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