बीएसएनएल का ये कैसा न्याय?
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’ ने राजस्थान के सभी सांसदों और राज्य के मुख्यमन्त्री को भी अपने पत्र की प्रतिलिपि भेजकर लिखा है कि जनप्रतिनिधि होने के नाते आप सभी का यह संवैधानिक दायित्व है कि गरीब, पिछड़े और प्राकृतिक आपदाओं को बार-बार सहने को विवश राज्य के लोगों को बीएसएनएल की भेदभाव पूर्ण नीतियों से मुक्ति दिलाई जावे और तत्कान न्यायसंगत दर पर गुजरात के समान ‘लो कर लो बात अनलिमिटेड’ सुविधा गुजरात में प्रभावी दर से आधी दर पर उपलब्ध करवाई जावे| डॉ. मीणा ने प्रेसपालिका को बताया कि केन्द्रीय संचार राज्य मन्त्री सचिन पायलेट राजस्थान राज्य से हैं, इसके उपरान्त भी राज्य के लोगों के साथ बीएसएनएल द्वारा मानमानी एवं नाइंसाफी किया जाना चिन्ताजनक है|
प्रेसपालिका न्यूज ब्यूरो
जयपुर| भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर मांग की है कि भारत सरकार के उपक्रम भारत संचार निगम लिमीटेड (बीएसएनएल) द्वारा किये जा रहे संविधान के उल्लंघन एवं अन्याय से लोगों को मुक्ति दिलाई जावे|
बास के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. मीणा ने प्रधानमन्त्री को पत्र लिखकर अवगत कराया है कि कि भारत संचार निगम लिमिटेड सीधे तौर पर भारत सरकार के दूर संचार विभाग के अधीन कार्यरत एक राष्ट्रीय सरकारी निकाय है, कार्य विभाजन की दृष्टि से अलग-अलग क्षेत्रीय प्रशासनिक कार्यालयों द्वारा संचालित किया जाता है| बीएसएनएल केन्द्र सरकार के नियन्त्रण में होने के साथ-साथ भारत के संविधान का अनुपालन करने के लिये बाध्य है| इसके उपरान्त भी बीएसएनएल के अदूरदर्शी अधिकारियों के कारण ऐसी नीतियॉं बनाकर लागू की जा रही हैं, जिनके चलते भारत की लोकप्रिय लोकतान्त्रिक सरकार के प्रति आम लोगों में लगातार असन्तोष और गुस्सा व्याप्त होता जा रहा है|
डॉ. मीणा ने प्रधानमन्त्री को अवगत करवाया है कि बीएसएनएल ने गुजरात राज्य में 111 रुपये प्रतिमाह के अतिरिक्त प्रभार पर ‘लो कर लो बात’ नाम से अनलिमिटेड योजना लगभग पांच वर्ष पूर्व से चालू कर रखी है, जिसके अन्तर्गत सम्पूर्ण गुजरात राज्य में बीएसएनएल के सम्पूर्ण नेटवर्क (बेसिक व सेलुलर) पर गैर मीटरिंग बात करने की सुविधा प्रदान की गयी है| जबकि इसके विपरीत बीएसएनएल ने गुजरात की ‘लो कर लो बात अनलिमिटेड’ के जैसी ही सुविधा राजस्थान में 17 मई, 2008 से 199 +कर रुपये आदि के अतिरिक्त मासिक भुगतान पर प्रारम्भ की थी|
इसमें राजस्थान में गुजरात की तुलना में कर सहित लगभग दुगुना अर्थात् उपभोक्ताओं से 98 रुपये प्रतिमाह अधिक वसूल कर सरेआम शोषण किया जा रहा है| डॉ. मीणा ने लिखा है कि 15 अगस्त, 2008 से यह सुविधा भी नये उपभोक्ताओं हेतु बंद कर दी गई है| भारत सरकार के एक ही संस्थान द्वारा एक समान सेवा के लिए अधिक शुल्क वसूल करना शोषण व अस्वस्थ परिपाटी की परिभाषा में आता है| बीएसएनएल द्वारा भेदभाव, शोषण व असंवैधानिक कृत्य किया जा रहा है, जिसे तत्काल रोकना जरूरी है|
डॉ. मीणान ने अपने पत्र में कहा है कि बेसिक फोन की तुलना में सेलुलर फोन की अतिरिक्त सुविधाओं के कारण सेलुलर फोन धारकों की संख्या बेसिक फोन से लगभग 10 गुणा है| अत: उपभोक्ताओं को वास्तविक लाभ सेलुलर फोन पर नि:शुल्क सुविधा उपलब्ध करवाने से हो सकता है| डॉ. मीणा ने लिखा है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 38 के अनुसार कमजोर तथा पिछड़ों नागरिकों के हितो की रक्षा के लिए योगदान देना सरकार का अनिवार्य संवैधानिक कर्त्तव्य है, जिसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा समय-समय पर अनेक निर्णयों में नागरिकों के अधिकार के रूप में भी परिभाषित भी किया है| इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 14 के प्रकाश में सरकार का अनिवार्य और बाध्यकारी दायित्व है कि वह अपने समस्त नागरिकों से एक समान व्यवहार करे|
डॉ. मीणा ने प्रधानमन्त्री को याद दिलाया है कि बेशक बीएसएनएल को प्रशासनिक दृष्टि से कितने ही भागों या क्षेत्रों में विभाजित किया जा चुका हो, लेकिन सभी क्षेत्रों में सेवारत बीएसएनएल के सभी कर्मचारियों और अधिकारियों को एक समान वेतन-भत्तों का भुगतान किया जाता है| अत: यह स्वत: प्रमाणित है कि देश के सभी क्षेत्रों में बीएसएनएल की सेवा लागत एक समान है| ऐसे में अकारण अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग या कम-ज्यादा शुल्क वसूलना अतार्किक है|
डॉ. मीणा ने आगे अपने पत्र में यह भी स्पष्ट किया है कि यदि बीएसएनएल अपनी दरों में किसी प्रकार का अन्तर करना जरूरी समझता है तो ऐसा अन्तर संविधान सम्मत प्रावधानों के अनुरूप ही किया जाना चाहिये| जिसके लिये संविधान में अनेक उपबन्ध किये गये हैं और विधि का यह सर्वमान्य सिद्धान्त है कि ‘‘जिन्हें अपने जीवन में कम मिला है, उन्हें कानून में अधिक दिया जावे|’’ इसी अवधारणा को ध्यान में रखते हुए संविधान की उद्देशिका तथा अनुच्छेद 38 में आर्थिक न्याय के तत्व का समावेश किया गया है और इसी कारण बीएसएनएल द्वारा समान लागत के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में कम आयवर्ग के नागरिकों के निवास के कारण कम किराये पर भी अधिक मुफ्त टेलिफोन कॉले उपलब्ध करवायी जा रही है|
केवल यही नहीं, बल्कि अनेक कम आय अर्जित करने वाले राज्यों में भी इस प्रकार की छूट प्रदान की गयी है| वर्ष 2002-03 के आंकड़ों के अनुसार बिहार, राजस्थान व गुजरात राज्य की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय क्रमश: 5683 रुपये, 12743 रुपये एवं 22047 रुपये है| सम्भवत: इसी विषमता को ध्यान में रखते हुए और के सामाजिक न्याय स्थापित करने वाले लोककल्याणकारी राज्य की स्थापना सुनिश्चित करने वाले प्रावधानों को ध्यान रखते हुए बिहार राज्य में बीएसएनएल द्वारा टेलीफोन सुविधा पर किसी प्रकार का किराया नहीं लिया जा रहा है| जबकि गुजरात राज्य में ‘‘लो कर लो बात अनलिमिटेड’’ सुविधा 111 रुपये प्रतिमाह शुल्क पर दी जा रही जबकि गुजरात में प्रतिव्यक्ति आय (22047 रुपये) की तुलना में राजस्थान के लोगों की प्रतिव्यक्ति आय (12743 रुपये) लगभग आधी है|
क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने हेतु राजस्थान में समान सुविधा गुजरात में उपलब्ध करवाई जा रही दर से आधी दर (करीब 55 रुपये प्रतिमाह) पर उपलब्ध करवायी जानी चाहिए| किन्तु इसके विपरीत बीएसएनएल द्वारा संविधान के उक्त सभी प्रवधानों को धता बताते हुए न्यायसंगत दर (करीब 55 रुपये प्रतिमाह) की बजाय लगभग चार गुणा दर (199+कर) पर, गुजरात के समान सुविधा राजस्थान के नागरिकों को उपलब्ध करवायी जा रही है, जो भी अब बन्द कर दी गयी है| यह हर दृष्टि से न मात्र अन्यायपूर्ण है, बल्कि असंवैधानिक भी है|
डॉ. मीणा ने अपने पत्र में लिखा है कि यह सर्वविदित तथ्य है और सरकारी आंकड़ों से भी प्रमाणित होता है कि राजस्थान शिक्षा, कृषि एवं आर्थिक विकास आदि के सम्बन्ध में गुजरात राज्य की तुलना में पिछड़ा हुआ है और प्राकृतिक आपदाओं का शिकार होता रहता है| जहां पर संविधान के अनुच्छेद 38 के अनुसरण में बीएसएनएल को अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वाह करते हुए तुलनात्मक रूप से सस्ती सेवाएं उपलब्ध करवानी चाहिए| जबकि बीएसएनएल का वर्तमान दर ढांचा संविधान के प्रावधानों के पूर्णत: विपरीत है|
डॉ. मीणा ने प्रधानमन्त्री को लिखे पत्र की प्रतिलिपि संचार मन्त्री कपिल सिब्बल एवं संचार राज्य मन्त्री सचिन पायलेट को भी भेजते हुए लिखा है कि बीएसएनएल द्वारा राजस्थान में निर्धारित दर ढांचा मनमाना और संविधान के विपरीत होने के कारण सामाजिक न्याय एवं लोककल्याणकारी राज्य की अवधारणा के विपरीत है| ऐसी नीतियों से लोकतान्त्रिक तरीके से चुनी गयी सरकार जनता के बीच अलोकप्रिय हो जाती हैं| इसलिये केन्द्रीय सरकार को इस भेदभाव को तत्कान ठीक करने की जरूरत है| डॉ. मीणा ने अपने पत्र में मांग की है कि बीएसएनएल को निर्देश दिये जावें कि-
(क) क्षेत्रीय विषमता दूर करने हेतु बीएसएनएल द्वारा राजस्थान में दूरभाष पर गुजरात राज्य से आधी दर अर्थात 61 रूपये प्रतिमाह की दर पर ‘लो कर लो बात अनलिमिटेड’ सुविधा प्रदान की जावे|
(ख) बीएसएनएल द्वारा गुजरात राज्य की तुलना में राजस्थान राज्य के विभिन्न उपभोक्ताओं से अधिक वसूला गया शुल्क (199-61) 138 रुपये प्रतिमाह को पुराने उपभोक्ताओं को वापस किया जावे या आगे के बिलों में सामायोजित किया जावे| अन्यथा उपभोक्ता कल्याण निधि में अंतरित किया जावे|
डॉ. मीणा ने राज्य के सभी सांसदों और राज्य के मुख्यमन्त्री को भी अपने पत्र की प्रतिलिपि भेजी है और लिखा है कि जनप्रतिनिधि होने के नाते आप सभी का यह संवैधानिक दायित्व है कि गरीब, पिछड़े और प्राकृतिक आपदाओं को बार-बार सहने को विवश राज्य के लोगों को बीएसएनएल की भेदभाव पूर्ण नीतियों से मुक्ति दिलाई जावे और तत्कान न्यायसंगत दर पर गुजरात के समान ‘लो कर लो बात अनलिमिटेड’ सुविधा गुजरात में प्रभावी दर से आधी दर पर उपलब्ध करवाई जावे|
डॉ. मीणा ने प्रेसपालिका को बताया कि केन्द्रीय संचार राज्य मन्त्री सचिन पायलेट राजस्थान राज्य से हैं, इसके उपरान्त भी राज्य के लोगों के साथ बीएसएनएल द्वारा मानमानी एवं नाइंसाफी किया जाना चिन्ताजनक है|
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